ग़ाज़ीपुर
लहुरी काशी का यह सिद्धपीठ शिवस्थली भक्तों के लिए आस्था एवं विश्वास का एकमात्र केन्द्र है
शिवस्थली के रूप में इसका नाम प्रमुखता से लिया जाता है
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गाजीपुर।लहुरी काशी का यह सिद्धपीठ शिवस्थली महाहर धाम भक्तों के लिए आस्था एवं विश्वास का एकमात्र केन्द्र है।इसकी एक अलग अपनी पहचान है।शिवस्थली के रूप में इसका नाम प्रमुखता से लिया जाता है।उत्तरी भाग पर स्थित इस धाम पर जहां महाशिवरात्रि पर भक्तों का रेला उमङता है।वही पूरे सावन माह मंदिर परिसर घंटों की आवाज से गुंजायमान रहता है।जहाँ पर एक तरफ पूरे पूर्वांचल के जिले सहित पड़ोसी राज्य के भी श्रध्दालु इस धाम पर पहुंचकर दर्शन पूजन कर बाबा भोलेनाथ से मन चाहा मुराद मांगते है।इस धाम कि ऐसी मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप कट जाते हैं।सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद भोले पूरी करते हैं।कहां जाता है कि इस धाम का निर्माण राजा दशरथ ने कराया था।यह महल दशरथ के गढ़ी के नाम से विख्यात है।वेदों व पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार श्रवण कुमार की यही पर राजा दशरथ के चलाए गए शब्दभेदी वाण से मृत्यु हो गई थी।धाम के दक्षिण तरफ श्रवणडीह नाम का गांव भी विद्यमान है,जहां पहले से बनाया गया श्रवण कुमार का मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है।तेरह मुखी मुख्य शिव की प्रतिमा पूरे देश में पहली प्रतिमा है ऐसी दूसरी प्रतिमा मक्का मदीना में और कहीं नहीं है।इसी के साथ ही शिव-पार्वती,कार्तिकेय,गणेश की युगल मूर्ति भी अद्भुत व पूजनीय है।मंदिर के सामने उत्तर से दक्षिण तरफ दिशा में एक किलोमीटर तक लम्बा सरोवर है,जहां हजारों वर्ष पहले इस स्थान पर माँ गंगा का प्रवाह था,जो अब पूरईन झील के रूप में रह गया है।सावन के प्रत्येक सोमवार को जलाभिषेक के लिए यहां कांवरियो का रेला उमङता है बाबा का आर्शीवाद पाने के लिए भक्तों को घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है।तथा इसके अलावा महाशिवरात्री के अवसर पर सात दिन चलने वाले मेलों में दर्शनार्थियों सहित ग्रामीण क्षेत्रों के लाखों लोगों द्वारा मेले का लुत्फ भी बढ़चढ़ कर ऊठाया जाता।