गाजीपुर:जनपद के 34 भावी मंडल अध्यक्षों के चेहरे पर छाई मायूसी-कही ख़ुशी तो कहीं गम की छाया प्रबल
कद्दावर व दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर,सब अपने-अपने जुगलबंदी में मशगूल हैं

गाजीपुर।जनपद के 34 भावी मंडल अध्यक्षों के चेहरे पर छाई मायूसी-कही ख़ुशी तो कहीं गम की छाया प्रबल।
कद्दावर व दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर।सब अपने -अपने जुगलबंदी में मशगूल हैं।भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संगठन चुनावों में इस बार काफी खींचतान और आंतरिक संघर्ष देखने को मिल रहा है। 15 दिसंबर को ही बीजेपी अपने सभी मण्डल अध्यक्षों के नाम घोषित करने वाली थी । लेकिन पार्टी के अंदर विभिन्न गुटों और वरिष्ठ नेताओं द्वारा अपने-अपने समर्थकों को महत्वपूर्ण पदों पर स्थापित करने की कोशिशें लगातार की जा रही हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति अब तक फाइनल नहीं हो पाई है। इन बड़े नेताओं के अपने “खास” को स्थापित करने के चक्कर में पार्टी के कैडर, जो बीजेपी के मूल स्तंभ माने जाते हैं, खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले इन कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनकी मेहनत और योगदान को अनदेखा किया जा रहा है, और वरिष्ठ नेताओं के कृपापात्रों को प्राथमिकता दी जा रही है। इस स्थिति को देखते पार्टी की छवि को नुकसान पहुंच सकता है, क्योंकि यह मुद्दा न केवल आंतरिक संगठन में असंतोष को बढ़ा रहा है,बल्कि जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के मनोबल को भी प्रभावित कर रहा है। इन चुनावों के लिए जिम्मेदार पदाधिकारियों ने बीच का रास्ता निकालने का लगातार प्रयास किया है।अब देखना है कि क्या बीजेपी के मूल कार्यकर्ताओं को सम्मान मिलता है या नहीं। वहीं अगर पार्टी को अपनी “विश्व की सबसे बड़ी पार्टी” का तमगा बनाए रखना है, तो उसे जल्द ही इस मतभेद को दूर कर कार्यकर्ताओं के विश्वास को बहाल करना होगा। साथ ही, पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाते हुए सभी को समान अवसर प्रदान करने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।लेकिन सवाल फिर वही है कि क्या ये तथाकथित बड़े नेता जो अपने “खास” को व्यवस्थित करने में पूरा जोर लगाए हुए हैं।अब देखना यह है कि क्या वह इन चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष होने देंगे।