ग़ाज़ीपुर

कामयाब वही हो सकता है जो नब्स कि पैरवी न करता हो:मौलाना अम्बर अब्बास

‌कामयाब वही हो सकता है जो नब्स कि पैरवी न करता हो:मौलाना अम्बर अब्बास

कासिमाबाद।क्षेत्र के ग्राम पंचायत गंगौली में स्थित जाफरी मंज़िल में मोहर्रम की मजलिस का आयोजन हुआ जिसमें पेशख़्वानी से शुरूआत हुई। मोहम्द,कौनैन गंगौलवी, हैबत ग़ाज़ीपुरी, ने किया।मजलिस को जौनपुर से आए शिया धर्मगुरु मौलाना अंबर अब्बास ख़ान साहब क़िब्ला ने ख़ेताब करते हुए कहा कि ये मजलिसें और जुलूस जो हर गांव हर शहर में मोहर्रम के दिनों में होतें हैं ये इस बात के बयां हैं कि कर्बला में इमाम हुसैन और उनके साथियों पर बेइंतहा ज़ुल्म हुआ था। इमाम हुसैन के घर वाले और उनके साथियों को इस्लाम के दुश्मन यज़ीद की सेना ने कर्बला में तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया। जिसमे इमाम हुसैन के छः महीने का दूध पीते बच्चा को पानी न देकर गले पर तीर चलाकर शहिद कर दिया गया।

मौलाना कहते हैं कि मोहर्रम वही आदमी मनाता है जो इंसानियत पैरोकार होता है। क्योंकि जब वो कर्बला की कथा सुनता है तो उसके अंदर की इंसानियत उसको इस ज़ुल्म पर आंसू बहने पर मजबूर कर देती है।
मोहर्रम के जुलूस में हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई सभी शामिल होते हैं और इमाम हुसैन के ग़म को मानतें हैं। किसी के ग़म में शामिल होने के लिए किसी मज़हब या धर्म कि क़ैद नहीं है। जिसकी मिसाल गाजीपुर के प्रसिद्ध नौहाख्वान राजू पांडेय जी भी है जो इमाम हुसैन की याद में नौहा पढ़ते हैं।
इन मजलिसों और जुलूसों में कर्बला की कहानी से जुड़े लोगों की यादों को शामिल किया जाता है जैसे अलम, ताजिया, झूला आदि।मौलाना आगे बताते हैं कि 10 मोहर्रम को इमाम हुसैन अ॰ स॰ को उनके 71 साथियों सहित कर्बला में शहीद कर दिया गया जिसमे अकेले हुसैन ने एक दिन में 71 लाश अपने हाथों से दफ़न की और जब इमाम हुसैन शहीद हुए तो उनकी लाश पर घोड़े दौड़ाए गए।हम उसी इमाम की मुसीबत को याद करके रोते हैं और आंसू बहाते हैं। और ये अहेद करतें हैं कि किसी भी बेगुनाह का ख़ुन न बहाया जाए।मजलिस के बाद अली गंगौलवी ने नाैहा पढ़कर लोगों की आंखों को आंसुओं से भर दिया।मजलिस में इमाम हुसैन कि याद में सबिल वितरण किया गया।अंत में मजलिस के आयोजनकर्ता सैय्यद मुजफ्फर हुसैन जाफ़री, व जाफ़री ब्रदर्स ने इमाम हुसैन का (प्रसाद) तबर्रूक वितरण किया व मजलिस में आए हुए लोगों का शुक्रिया अदा किया। मजलिस में सैय्यद मंसूर मेंहदी आसिफ़ मेहदी, कुमैल जाफ़री, क़मर हैदर, शब्बीर हैदर, नसीम हैदर, मुहम्मद ज़की, जावेद, आमिल, शारिब, ज़ैगम, आदि लोगों ने शिरकत किया।

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