एक नज़र इधर भी-कलमकारों के धैर्य की पराकाष्ठा को तोड़ रहे आएं दिन तथाकथित पत्रकार
रिपोर्ट:वरिष्ठ पत्रकार,प्रखर वक्ता व कवि गौरीशंकर पाण्डेय सरस के कलम से

गाजीपुर।रोज की तरह एक दिन सूरज देव अपने शयन कक्ष की तरफ़ क़दम बढ़ाने को बेताब थे तो दूसरी तरफ संध्या परी मंद गति से धुंधलापन के साथ काली कलूटी रात के आगमन का डरावना संदेश लेकर दस्तक देने को व्यग्र थी।अर्थात दिया लगान की बेला थी,कुछ अवैध बिजनेश कर्ता अपनी अवैध कमाई का हिसाब-किताब अपने टाईगर को देने के वास्ते सही-सही ठीक करने में मशगूल थे।आर्डर पर चाय विक्रेता चाय देकर कब चला गया और चाय गर्म से कब ठंडी हो गई इसका पीने वालों को जरा सा भी ख्याल नहीं रहा की चाय की चुस्की का आनंद भी लेना है।इसी बीच थल मार्ग से मृत्यु लोक की खबर संकलन करने निकले सेमटू सूचना संप्रेषक श्री नारद भगवान की नजर अवैध कारोबारियों की कड़कड़ाती नोटों की गड्डी पर पड़ गई।और दिल मचल-मचल सा गया।अगले दिन-दिन के उजाले में नारायण-नारायण शब्द उवाच की जगह “बच्चा राम भला करें “के सुखद शब्द उच्चारण के साथ पधारे।ताज्जुब की इस बार नारद जी के हाथ में वीणा नहीं बल्कि डिजिटल खबरिया भोंपू था।संस्कारित और विद्वता की भाषा भी काफी कुछ हद तक बदली हुई थी।अबकी अपना परिचय अहम ‘नारदामि अस्मि,के स्थान पर हिंदी और उर्दू के साथ-साथ लोक भाषा के रीमिक्स शब्द कुछ और ही संकेत दे रहे थे।चारों तरफ शोहरत के बवंडर से दाल में काला नज़र आ रहा था।मृत्यु लोक के चतुर सुजान भी बखिया उधेड़ने पर उतारू तबज्जों देने से परहेज़ कर रहे थे।इसलिए कि सेमटू नारद अपने चरित्र का मटमैला परिचय लिमिटेड अस्पताल से लगायत प्राईवेट लिमिटेड और झोला छाप धरती के भगवानों तक और सरकारी गैर सरकारी ज्ञान पियाऊ केन्द्रों तक पहले ही दे चुके थे।फिर भी अपना चरित्र दोष और अपनी कई-बार हुई दुर्गति को नजरंदाज कर एक बार फिर अचानक रूपवती लक्ष्मी श्री के चक्कर में फंस गए।कुछ महीनों साल पहले नशीले पदार्थों के अवैध विक्रेताओ पर धौंस जमाते हुए कुछ ऐंठने की गरज से मुंह पर भोंपू तान दिए थे।साथ के छिछोरे साथियों ने भी रौब गांठने से परहेज़ नहीं किया था।खैर! बीती ताहि बिसार के अब आगे की सुधि लेने में जब लेने के देने पड़ गये।और सफलता हाथ नहीं लगते देख छिछालेदर ब्राडकास्ट करने पर उतर आए। लेकिन दूसरा पक्ष भी हम किसी से कम नहीं की तर्ज पर नहले पर दहला रखने से बाज नहीं आया।बात इतनी बढ़ गई की बात गरदाखोर प्रमुख सरगनाओं के दरबार तक जा पहुंची।परंतु कुछ ने तो अपीलकर्ता की अपील को खारिज करते हुए आदत से लाचार बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया लेकिन कुछ चुनिंदा गोलियरों ने दण्डाधिकारी शनिदेव महाराज के दफ्तर में पहुंच कर लिखित शिकायत दर्ज कराते हुए न्याय की गुजारिश की।इसकी खबर मिलते ही कुछ बहरांसू ईमानदार मित्रों ने अक्लमंद इशारा काफी का मंत्र देते हुए सुधर जाने की हिदायत दी।बावजूद मंत्र बेअसर साबित हुआ।जिसका नतीजा यह हुआ कि ऊपर वाले की कृपा दृष्टि से रपटी रपटा तक नौबत आ गई।गोपनीय सूत्रों भुक्त भोगियों की टीम ने भी अलग से मोर्चा खोलकर खुल्लम-खुल्ला सत्य को प्रकाश में लाने के लिए कटिबद्धता दिखाई।यहां तक कि चिल्ला-चिल्ला कर तंग कर्ता की पोल खोलने में रुचि लेते हुए बताने लगे कि पहले विश्वमोहिनी के स्वयंवर में काम भाव के चलते मुख की आकृति में बदलाव हुआ।उसके बाद विष कन्याओं के जरिए जाल बिछाकर लोगों को फांसने के एवज में गति खराब हुई।जिसके चलते कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे।फिर भी दिल है कि मानता नहीं।अपनी लूटपाट छापामारी की ओछी हरकत से उबरने और सुधरने के बजाय खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसी हालत बना रक्खे हैं। फिर भी किसी पर रत्ती भर भी बिगड़ैल घोड़े की दुलत्ती सा प्रभाव पड़ता नजर नहीं आया।इतना जरूर है कि स्वामी भक्ति के स्वर में स्वर मिलाने वाले अंधे लंगड़े काने कूबरे आदि फुटकर साथियों की सिट्टी-गुम दिखाई देने लगी है। इस लिए कि महाभारत काल से चली आ रही परंपरागत वर्तमान कलियुगी मुखियाओं के कर्त्तव्यपरायणता की दुर्गंध से तंग आकर धारदार और वाक्पटु कलमकारों ने ऐसों के खिलाफ शासनात्मक कार्रवाई की मांग की।जिससे पत्रकारिता की उर्वरा भूमि पर अनायास बेमौसमी नर्सरी तैयार कर प्रतिष्ठा परक छबि को खराब करने वालों पर चाबुक कसा जा सके।इससे कतिपय लोगों के धमनियों का रक्त चाप भी बढ़ने लगा है।और अकल ठिकाने लगने का भी डर सताने लगा है।जबकि अकल ठिकाने लगने की सौ प्रतिशत शुद्धता की गारंटी कोई नहीं ले सकता।लब्बो- लुआब यही कि मांसाहारी जीवों से शाकाहारी जीव इन दिनों कुछ ज्यादा ही परेशान हैं।और चिर्राईन खबरों ने खूब हल्फा मचाया है।पाठकों की बढ़ती दूरी और पत्रकारिता से उठता विश्वास यह बताने को विवश है कि फरेबी मीडिया की हौआ ने शुद्ध पत्रकारिता की हवा खराब करके रख दी है।निष्पक्ष निर्भीक और निर्विवाद पत्रकारिता की साख खराब करने वाला तथा आज के दौर में तेजी से पनपता मतलबी पत्रकारिता का बीजांकुर पत्रकारिता का संतुलन बिगाड़ने में मददगार साबित होने लगा है।राष्ट्र का चौथा स्तंभ होती हुई पत्रकारिता को बदनामी की चादर ओढ़ाया जाना लज्जा और अफसोस जनक है।सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बेशक पत्रकारों की एक लंबी फौज खड़ा तो किया है।जिसके मुख्य उद्देश्य में सामाजिक बुराईयों का पर्दाफाश,दबंगों द्वारा हो रहे शोषण,भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज मुखर करना,देश की आन-बान-शान पर आती आंच के खिलाफ कलमकारों की कलम को धार देना आदि शामिल हैं।परंतु कुछ को छोड़कर अधिकांश पत्रकारिता धर्म मार्ग से विचलित होकर अनैतिकता के दल-दल में उतरकर चिंता का बिषय बन गए हैं।सच को सच बयां करने की फ़ीस,सही को ग़लत ठहराकर वसूलने की आदत आदि सब चिंतनीय विषय है।जिससे यह प्रतीत होता नजर आ रहा है कि हर हाल में उसने जीने की खाई तो थी लेकिन अब वही किसी भी हाल में मर जायेगा।
एक नज़र इधर भी-कलमकारों के धैर्य की पराकाष्ठा को तोड़ रहे आएं दिन तथाकथित पत्रकार:
रिपोर्ट:वरिष्ठ पत्रकार,प्रखर वक्ता व कवि गौरीशंकर पाण्डेय सरस के कलम से