दुधारू पशुओं में आहार प्रबंधन से गर्मी में भी पशुपालक भरपूर दूध ले सकते हैं
दुधारू पशुओं में आहार प्रबंधन से गर्मी में भी पशुपालक भरपूर दूध ले सकते हैं

गाजीपुर।दुधारू पशुओं में आहार प्रबंधन से गर्मी में भी पशुपालक भरपूर दूध ले सकते हैं।पारा चढ़ने के साथ गर्मी के मौसम में पशुपालकों की आम शिकायत रहती है कि दुधारू पशु इस मौसम में दूध का उत्पादन कम कर देते हैं। संयोग से लगन के कारण भी इस मौसम में दूध की सर्वाधिक मांग होती है। ऐसे में अचानक दूधारू पशुओं के दूध कम कर देने से पशुओं व उपभोक्ताओं को खासी दिक्कत होती है। मांग और आपूर्ति का संतुलन गड़बड़ाने से से कई तरह की समस्याएं जैसे – दूध के दाम में तेजी, दूध में मिलावट आदि की समस्याएं पैदा होती है।अचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध आकुशपुर कृषि विज्ञान केंद्र के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ. ए के सिंह के द्वारा ब्लॉक रेवतीपुर के अंतर्गत आप कैंपस प्रशिक्षण के दौरान प्रगतिशील पशुपालकों को जानकारी दी कि अगर पशुओं के आहार में भरपुर मौसमी हरे चारे का प्रयोग, पौष्टिक दाना मिश्रण एवं भरपूर पानी पिलाकर पशुओं के शरीर के तापक्रम को नियंत्रित कर ले एवं लु लगने से बचा ले तो दूध की समस्या का हल संभव है।तेज धूप एवं गरम हवाओं के चलने के कारण वातावरण का तापमान 40 डिग्री से अधिक हो जाता है जिससे पशुओं की पाचन क्रिया सुस्त पड़ जाती है तथा पशु चारा – दाना कम खाने लगता है। मौसम व नियोजन के कारण हरे चारे की कमी से समस्या और बढ़ जाती है और पशु का दूध अचानक कम हो जाता है। पशुओं को गर्मी व लु से बचाकर हरे हल्के व सुपाच्य पौष्टिक चारे की व्यवस्था कर काफी हद तक इस समस्या से निजात संभव है। डॉक्टर सिंह के अनुसार पशुओं को मौसम की मार से बचाने के लिए उनके खाने और रहने का स्थान छायादार होना चाहिए और जहां पशु बाधे जाय वहां पर भरपूर मात्रा में पानी होना चाहिए जिससे कि जब भी उसे प्यास लगे उसको पानी आसानी से उपलब्ध रहे। पशुओं को कम से कम दो बार नहलाने के साथ-साथ भरपूर मात्रा में पानी पिलाना चाहिए।
जो पशुपालक भाई हरे चारे के लिए फरवरी के अंत तक सुडान चरी एवं उर्द मूंग, लोबिया की बुआई कर चुके हो तो उनके यहां इस समय हरा चारा उपलब्ध होगा और जिन किसानों के पास खेत खाली नहीं थे अब गेहूं की कटाई के बाद खाली पड़े खेत में विलंब ना करते हुए सुडान चरी उर्द -मूंग एवं लोबिया अति शीघ्र बुवाई कर ले क्योंकि दूध की कमी का एक मुख्य कारण यह भी है कि मई-जून में भरपूर मात्रा में पशुओं को हरा चारा नहीं मिल पाता है जिसका कि सीधे-सीधे संबंध दूध उत्पादन से है। उर्द, मूंग, लोबिया दलहनी चारा होता है जो पशुओं के लिए सुडान चरी की तुलना में काफी पौष्टिक होता है और उड़द मूंग की फसल से दलहन भी मिलता है और बदले में पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था हो जाती है
गरमी में पशुओं को सुपाच्य हरे चारे एवं दाना मिश्रण का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। एक दुधारू गाय /भैंस को निर्वाह के लिए हर रोज 5 कि.ग्रा भूसा के साथ 12 कि.ग्रा लोबिया या 3 कि.ग्रा भूसा के साथ 20 कि.ग्रा ज्वार/बाजरा/ मक्का के हरे चारे के साथ 1 कि.ग्रा दाना मिश्रण देना चाहिए। अगर हरा चारा उपलब्ध नहीं है तो भूसे के साथ
2.0 किलोग्राम दाना मिश्रण एवं 1.0 किलोग्राम शीरा देना चाहिए। इसके अलावा प्रति लीटर दुग्ध उत्पादन के लिए 350 ग्राम दाना मिश्रण की मात्रा बढ़ाते जाना चाहिए। इसके साथ ही 50 ग्राम खनिज तत्व, 30 ग्राम नमक देना चाहिए। पशुओं के चारे दाने में खनिज तत्व एवं नमक के ना होने से पशुओं में बांझपन, समय से गर्भ धारण न करना, और मिल्क फीवर की बीमारी आदि की समस्या बढ़ जाती है। (*10 किलो दाना बनाने की विधि* : अनाज गेहूं/जौ/ज्वार/ बाजरा 4.0 किग्रा + 3.0 किग्रा खली+ 1.0 किग्रा दाल की चुन्नी+ 1.7 किग्रा गेहूं का चोकर+ 20 ग्राम खनिज तत्व +10 ग्राम नमक ) इस प्रकार गर्मी में पशुओं की देखभाल की जाए तो दूध उत्पादन में कमी नहीं हो पाएगी और पशु का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।