ग़ाज़ीपुर

कृषि वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों के दल ने कराया क्राफ्ट कटिंग

चयनित भूखंड के 1 हेक्टेयर में क्राॅप कटिंग कराई गई

मरदह गाजीपुर।इस समय गेहूं की कटाई-मड़ाई का कार्य तेजी से चल रहा है।शनिवार को ब्लाॅक के चंवर गांव में मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ एस.के.दूबे,डॉ सुधांशु सिंह,डॉ बी. पी.सिंह,डॉ आर.के.मलिक ने गेहूं फसल की क्राॅप कटिंग कराई।गांव के प्रगतिशील किसान अमरजीत सिंह की खेत में गेहूं की क्राॅप कटिंग कराई गई।यहां चयनित भूखंड के 1 हेक्टेयर में क्राॅप कटिंग कराई गई।इस दौरान फसल का वजन 5250 किग्रा पाया गया।फसल का वजन कराकर पैदावार की जांच की।उन्होंने फसल की उत्पादकता दर देखी।मिनी सचिवालय में चौपाल के माध्यम से किसानों की समस्याएं सुनीं।जहां 55 प्रगतिशील कृषकों ने भाग लिया।
डॉ एस.के.दूबे‌ ने बताया कि जीरो टिलेज से पराली की समस्या दूर होती है।साथ ही कई और भी फायदे हैं।धान की कटाई के बाद गेहूं की बोआई के लिए खेत की तैयारी में परंपरागत विधि में 6-8 जोताई की आवश्यकता पड़ती है जबकि जीरो टिलेज मशीन से बोआई करने पर यह कार्य बिना जोताई होती है। इसलिए खेत की तैयारी में लगने वाले खर्च में लगभग आठ से दस हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से बचत हो जाती है।साथ ही समय भी बचता है।डॉ.आर के मलिक के मुताबिक इस विधि से बोआई करने पर गेहूं के पौधों के जड़ों की पकड़ अच्छी रहती है,जिससे पौधा जमीन पर नहीं गिरता है।जीरो टिलेज से मृदा (मिट्टी) संरचना और मृदा (मिट्टी) उर्वरता बनी रहती है।गेहूं के पौधे की बढ़वार अच्छी होती है।डॉ सुधांशु सिंह ने बताया कि जीरो टिलेज तकनीक से बोआई करने पर गेहूं की पैदावार परंपरागत बोआई की अपेक्षा अधिक होती है।जीरो टिलेज मशीन से गेहूं की बुवाई 10-15 दिन पहले की जा सकती है।इससे देर से बोआई के कारण पैदावार में होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकती है।इस विधि से बोआई करने पर गेहूं के पौधों के जड़ों की पकड़ अच्छी रहती है।जिससे पौधा जमीन पर नहीं गिरता है।जीरो टिलेज से मृदा संरचना और मृदा उर्वरता बनी रहती है।डा.बी.पी.सिंह के मुताबिक जीरो टिलेज तकनीकी से खेती करने पर 20-30 प्रतिशत बीज और 30 प्रतिशत खाद की बचत होती है। साथ ही पानी की भी बचत होती है। इस तकनीकी से 4 से 5 सेमी की दूरी पर बीज खेत में डाला गया जबकि धान की कटाई के बाद बचे अवशेष खेत में वैसे ही पड़े रहे, जो बाद में मिट्टी में सड़कर खाद बन जाएंगे।केवीके वैज्ञानिक डॉ अमितेश सिंह ने बताया कि गेहूं उत्पादन की यह ऐसी तकनीक है.तकनीक से जीरो टिलेज मशीन के द्वारा खेत में उर्वरक एवं बीज एक साथ प्रयोग किए जाते हैं.छिटकाव विधि के मुकाबले इस पद्धति में प्रति एकड़ बीज दर कम लगती है.बीज की बुआई सीधी कतार में एक निश्चित दूरी के अंतराल में होती है.शुरुआती अवस्था में पौधे स्वस्थ एवं मजबूत दिखते हैं जिसका बाद में जड़ से अच्छे फ़ुटाव देखने को मिलता है।डॉ वीके सिंह ने कहा कि जनपद में किसानों की कोई समस्या हो तो तुरंत कृषि विज्ञान केन्द्र वैज्ञानिक से सम्पर्क कर समाधान कर सकते हैं।आगे कहां कि गेहूं की पहली पटवन 22 से 25 दिनों पर अवश्य करे तथा पटवन उपरांत अनुशंसित मात्रा में यूरिया उर्वरक का प्रयोग करें.उन्होंने पहली पटवन के एक सप्ताह बाद प्रयोग होने वाली खरपतवारनाशी दवा के बारे में तथा उसके प्रयोग करने की विधि की विस्तार से जानकारी दी।डॉ जयप्रकाश सिंह ने कहा धान की कटाई कम्बाइन मशीन से करने बाद पूरे अवशेष खेत में ही पड़े रहते हैं।यह अवशेष गेहूं की फसल में ‘मल्च’ का कार्य करते हैं जिससे पानी (नमी) का वाष्पीकरण कम होता है।इन अवशेषों के सड़ने से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है।जीरो टिलेज तकनीक से बोआई करने के बाद यदि बारिश हो जाती है तो खेत में पपड़ी नहीं पड़ती है तथा फसल का अंकुरण प्रभावित नहीं होता है।कृषि विभाग से उप कृषि निदेशक अतेंद्र सिंह ने बताया कि जिले के अमरजीत सिंह उन किसानों में शामिल हैं जिन्होंने जीरो टिलेज तकनीक से गेहूं की बुवाई की है।इस तकनीक से बीज और खाद की बचत होती है और पानी की भी बचत होती है।विशेषज्ञों के अनुसार,इस विधि से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और गेहूं की पैदावार अच्छी होती है।इस मौके पर डॉ शांतनू कुमार,डॉ विक्रम पाटिल,डॉ सूर्यकांत खंडाई, डॉ अजय कुमार,डॉ सुनील कुमार,एडीओ एजी राममिलन गौड़,बीटीएम प्रदीप सिंह,प्रधान मुकेश कन्नौजिया,रामविलास सिंह आदि मौजूद रहे।

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