वाद्ययंत्रों के साथ जमीन पर बैठ कर चैता गाने की परंपरा है:गौरीशंकर पाण्डेय “सरस”
इलाकाई मिट्टी की सोंधी सुगन्ध और मन के आनंद की सुखद अनुभूति का नाम है लोक गीत

दुल्लहपुर गाजीपुर।इलाकाई मिट्टी की सोंधी सुगन्ध और मन के आनंद की सुखद अनुभूति का नाम है लोक गीत।जिसकी विविध विधाओं का प्रचलन आज भी बदस्तूर जारी है।उन्हीं में से एक विधा है चैता है।जो चैत मास में गाया जाता है।चैता गीत पढ़ने नहीं बल्कि सुनने की चीज है जिसमें छंद नहीं अपितु लय के साथ रस की प्रधानता होती है।चैता गीत गायन की शुरुआत हिंदू नव वर्ष के साथ यानी चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है। चैत्र मास मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्मोत्सव से जुड़ा होने के कारण चैता गीत में रामा शब्द का टेक लगाकर गाने का चलन आज भी प्रचलन में है। जिससे भगवान राम के जन्म से जुड़ा होने के महीने की पुष्टि होती है। जैसे -रामजी के भईलें जनमवां हो रामा चईत महीनवां।–वाद्ययंत्रों के साथ जमीन पर बैठ कर चैता गाने की परंपरा है।चैता गीत में भक्ति से लेकर मस्ती तक श्रृंगार से लेकर वियोग तक योग से लेकर संयोग तक देश से लेकर परदेश तक की व्यथा कथा का सजीव चित्रण मिलता है। किसी भी गीत गायन की शुरुआत देवी देवताओं के नाम स्मरण से किया जाना हमारी परंपरा की अनूठी पहचान है।उसी तरह चैता गीत गायन की शुरुआत भी देवी देवताओं के सुमिरन के साथ किया जाता है।जैसे -पहिले सुमिरिला आदि भवानी ए रामा कंठे सुरवा–कंठे सुरवा होखीं ना सहईया ए रामा चईत महीनवां -, चैता या चैती लोक गायन विधा को बनारसी संगीताचार्यो ने उप शास्त्रीय गायन का विकसित रूप बताया है। क्यों की चैती और ठुमरी गायन में काफी समरूपता दिखाई देती है। चैता गीत यूपी और बिहार का सर्वाधिक गाया जाने वाला लोक प्रचलित गीत है। जिसमें विविध भावाभिव्यक्ति की झलक दिखती है। जैसे वैवाहिक जोड़ी के आगमन पर उक्त गीत की प्रधानता साफ दिखाई देती है की “राजत राम सिय साथे हो रामा अवध नगरिया -”
गीत में श्रृंगार रस की प्रधानता की एक झलक इस तरह झलकती है “यही ठइयां मोतिया हिराय गईली रामा कहवां मैं ढूंढूं -“परदेश गए पति को पत्नी की तरफ से घर गृहस्थी की खबरों का भी उल्लेख मिलता है। जैसे-लागल बाड़े गेहूं क कटनियां हो रामा परलीं अकेले।हंसिया गतार ले सीवनियां हो रामा परलीं अकेले। रहतीं ज साथे राजा करववतीं कटनियां।संझिया बिहाने कटतीं दूनों परनियां–चईत महीने में आम में बौर के साथ महुआ को फूल भी झरने लगते हैं।जिसको संदर्भित करते हुए पत्नी पति से कहती हैं। महुआ बिनन नाही जईबें हो रामा हम महुली बरिया–पति की अनुपस्थिति में पत्नी अपने विरह व्यथा का संकेत इस तरह करती हुई कहती है।सूनी लागे साजल सेजरिया हो रामा चईत महीनवां।काटे धावे बाबा क बखरिया हो रामा चईत महीनवां–आदि।