गाजीपुर।महराज दशरथ द्वारा ही महाहर में देवाधिदेव महादेव शंकर भगवान की साकार प्रतिमा की स्थापना करायी गयी थी,जिसमें वे आकर भगवान शंकर की पूजा करते थे।ऐसी जनश्रुति प्राचीन काल से ही चली आ रही है।कहा जाता है कि ऐसी साकार मूर्तियों की स्थापना चक्रवर्ती सम्राट ही कराते रहे हैं।जो भारत में कम ही स्थानों पर मिलती हैं…गाजीपुर जनपद मुख्यालय से लगभग 30 किमी.उत्तर व मरदह ब्लाक से लगभग 5 किमी.पूरब सुलेमापुर देवकली ग्राम सभा में महाहर नामक स्थान जो यहां के लोगों के आस्था व विश्वास का प्रतीक है।महाहर धाम अपने आप में कई ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक विरासत समेटे हुए है। चक्रवती सम्राट महाराजा दशरथ के राज्य का पूर्वी भाग कहा जाने वाला यह स्थान श्रवण कुमार का निर्वाण स्थल भी रहा है।कहा जाता है कि सम्राट दशरथ ने ही यहां देवाधिदेव महादेव की साकार प्रतिमा की स्थापना करायी थी।इसी स्थान पर महाराज दशरथ ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा हेतु एक विशाल किले का निर्माण कराया था।वर्ष के कुछ महीनों में यहीं रहकर अपने सामाज्य के पूर्वी भाग का देखभाल किया करते थे।अयोध्या से महाहर पहुंचने के लिए एक मार्ग बना हुआ था।इसका अवशेष आज भी कुछ जगह दिखायी देता है।इस मार्ग का उल्लेख सरकारी अभिलेखों में आज भी स्थवट के रूप में अंकित है।महाराज दशरथ द्वारा ही महाहर में देवाधिदेव महादेव शंकर की पूजा करते थे। ऐसी जनश्रुति प्राचीन काल से ही चली आ रही है।कहा जाता है कि ऐसी साकार मूर्तियों की स्थापना चक्रवती सम्राट ही कराते रहे हैं।जो भारत में कम ही स्थानों पर मिलती है।आज से साठ वर्ष पूर्व तक यहां पर एक संस्कृत पाठशाला भी चलती थी।विद्यार्थी रात्रि में पाठशाला पर निवास करते थे।बताते हैं कि उस समय मंदिर के चारों तरफ भगवान शिव की सरोवर आज दुव्यवस्था की वजह से तीन भागों में विभक्त हो गया है।खोद रहे थे थोड़ी ही गहराई में नीचे जाने पर एक भव्य शिवमूर्ति प्राप्त हुई।इस मूर्ति को लोगों ने उस स्थान से कुछ दूर हटाकर स्थापित करना चाहा, परन्तु नीचे मूर्ति की चौड़ाई अधिक होने पर खोदे गये गड्ढे में ही मूर्ति की स्थापना कर दी गयी तथा एक मंदिर उसी स्थान पर बना दिया गया।मुख्य मंदिर के ठीक सामने लगभग 12 बीघे के क्षेत्रफल में फैला हुआ एक विशाल सरोवर है।जनश्रुति के अनुसार इस विशाल सरोवर का निर्माण भी राजा दशरथ द्वारा ही कराया गया था।वह सरोवर आज दुर्व्यवस्था की वजह से तीन भागों में विभक्त हो गया है।इस सरोवर के उत्तरी सिरा पर एक ऊंचा टीला विद्यमान है,जिसकी ऊँचाई धीरे-धीरे कम हो रही है। जनश्रुति के अनुसार यह टीला ही महाराज दशरथ के किला का अवशेष हैं इस टीले से ही अयोध्या गमन का मार्ग स्थवट शुरू होता है, जो जनश्रुति को पुष्ट करता है।दुर्ग द्वार से ही सरोवर के दूसरे छोर पर कमण्डल में जल भरते समय वनमृग के भ्रम में श्रवण कुमार को लक्ष्य करके महाराज दशरथ ने शब्दवेधी बाण चला दिया था,जिससे श्रवण कुमार की मृत्यु हो गयी थी।श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता को कांवर पर बिठाकर तीर्थ कराते हुए यहां पहुंचे थे।माता-पिता के पीने के लिये पानी की मांग करने पर श्रवण कुमार महाहर शिवमंदिर से लगभग चार किलोमीटर दक्षिण वन प्रांत में एक वृक्ष की शाखा पर अपनी कांवर लटकाकर जल की खोज में महाहर के उस सरोवर तक पहुँचे थे।जहां पर श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को वृक्ष में कॉवर सहित लटकाया था,वह स्थान आज भी सरवनडीह के नाम से प्रसिद्ध है तथा श्रवण कुमार के माता-पिता के याद में यहां एक छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है।महाहर एवं सरवनडीह के मध्य में एक भू-भाग जो आजकल पृथ्वीपुर के नाम से जाना जाता है,वह रामवन के नाम से आज भी विख्यात है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस बीच के भू-भाग में उस समय अवश्य ही जंगल रहा होगा।महाहर शिव मंदिर के दक्षिण तरफ करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर ‘काल भैरव का भव्य मंदिर बना हुआ है।इस मंदिर से सटे दक्षिण तरफ के दिशा की तरफ सुलेमापुर ग्राम से लेकर हरहरी ग्राम तक करीब चार सौ बीघा में फैली हुई विस्तृत पूरईन झील है।