गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है
लौवटन पाल व लालती देवी तथा अखिलेश आर्य व कलावती देवी बिहार प्रदेश के गयाजी निकले
गाजीपुर।मरदह स्थानीय गांव के दो जोड़ी दंपति पिंडदान करने को गयाजी हुए रवाना।स्थानीय गांव निवासी पति- पत्नी लौवटन पाल व लालती देवी तथा अखिलेश आर्य व कलावती देवी बिहार प्रदेश के गयाजी निकले।सर्व प्रथम अपने-अपने गांजे बांजे,हरी घंट के गांव स्थित काली मंदिर, राम जानकी मंदिर,शिव मंदिर,दुर्गा मंदिर,डीह बाबा मंदिर, सत्ती माता मंदिर,हनुमान मंदिर,ब्रह्म बाबा मंदिर में विधि विधान पूर्वक दर्शन पूजन उपरांत बस स्टैंड से निजी वाहन द्वारा जत्था आगे को रवाना हुआ।मान्यता के अनुसार वैसे तो परलोक सिधार चुके पितरों की तृप्ति के लिए पूरे साल पिंडदान होता है और किसी भी पवित्र सरोवर के पास किया जा सकता है.लेकिन पुराणों में पिंडदान के लिए कुछ विशेष स्थान बताए गए हैं।इसमें गया का स्थान सबसे ऊपर है।भगवान श्रीराम भी इस स्थान पर अपने पिता चक्रवर्ती महाराज दशरथ का श्राद्ध करने आए थे।गया के अलावा देश के कई अन्य स्थानों पर भी पिंडदान करने की परंंपरा है.हालांकि इन सभी स्थानों पर पिंडदान करते समय एक संकल्प मंत्र‘गयायां दत्तमक्षय्यमस्तु’ पढ़ा जाता है।लोग बड़े आदर से “गयाजी” कहते हैं।गया क्षेत्र को धार्मिक नगरी के रूप में भी जाना जाता है।गया जी के हर कोने पर मंदिर हैं। उनमें स्थापित मूर्तियां प्राचीन काल की बताई जाती हैं। हालाँकि,सभी की मान्यताएँ अलग-अलग हैं।ऐसा माना जाता है कि भगवान राम,सीता और लक्ष्मण गया जी आए थे और यहां पिंडदान किया था।तभी से यहां पिंडदान का महत्व शुरू हो गया।गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।अब देश-विदेश से लोग यहां पिंडदान करने और अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए प्रार्थना करने आते हैं।इस मौके पर सैकड़ों ग्राम वासियों सहित अशोक आर्य,बबलू सिंह,ओमप्रकाश पाल,राधेश्याम पाण्डेय,गृहवाश गोड़, रामविलास चौरसिया, सुरेन्द्र यादव, टुनटुन मद्धेशिया,प्रेम पाण्डेय,सीमा रानी आदि मौजूद रहे।