एस.सी.एस.पी.परियोजना अंतर्गत फल एवं सब्जियों में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रबंधन पर चर्चा
गाजीपुर एस.सी.एस.पी.परियोजना अंतर्गत फल एवं सब्जियों में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रबंधन पर चर्चा
गाजीपुर।आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा वित्त पोषित कृषि विज्ञान केंद्र अंकुशपुर ग़ाज़ीपुर में एस.सी.एस.पी.परियोजना अंतर्गत फल एवं सब्जियों में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रबंधन पर पांच दिवसीय (01 – 05 जुलाई) प्रशिक्षण का समापन हुआ। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. आर. सी. वर्मा ने ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई के महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी। और यह भी बताया की राज्य सरकार किसानों को ड्रिप व स्प्रिंकलर पर भारी अनुदान भी दे रही है, किसान भाई ड्रिप व स्प्रिंकलर सिंचाई का लाभ पाने के लिए उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के पोर्टल पर पंजीकरण कराते हुए योजना (बूंद-बूंद सिंचाई) का लाभ पा सकते है। कृषि अभियंत्रण के वैज्ञानिक डॉ. शशांक शेखर ने बताया की भारत में, सिंचित क्षेत्र निवल बुवाई क्षेत्र का लगभग 36 प्रतिशत है। वर्तमान में कृषि क्षेत्र में संपूर्ण जल उपयोग का लगभग 83 प्रतिशत जल उपयोग में लाया जाता है। शेष 5, 3,6 और 3 प्रतिशत जल का उपयोग क्रमश: घरेलू, औद्योगिक व उर्जा के क्षेत्रों तथा अन्य उपभोक्ताओं द्वारा किया जाता है। भविष्य में अन्य जल उपयोगकर्ताओं के साथ प्रतिस्पर्धा बढ़ जाने के कारण विस्तृत होते हुए सिंचित क्षेत्र के लिए जल की उपलब्धता सीमित हो जाएगी। एग्रीकल्चर एक्सपर्ट का मानना है की परंपरागत खेती के तरीकों में भूगर्भ जल का 85 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। जिससे सिंचाई की परंपरागत सतही विधियों में जल की क्षति अधिक होती है। यदि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई की विधियों को अपनाया जाए तो इन हानियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। और इसे अनेक फसलों, विशेषकर सब्जियों, बागानी फसलों, पुष्पों और रोपण फसलों में व्यापक रूप से उपयोग में लाया जा सकता है। ड्रिप सिंचाई में इमीटरों और ड्रिपरों की सहायता से पानी पौधों की जड़ों के पास डाला जाता है या मिटटी की सतह अथवा उसके नीचे पहुंचाया जाता है। इसकी दर 2-20 लीटर/घंटे अर्थात बहुत कम होती है। जल्दी-जल्दी सिंचाई करके मृदा में नमी का स्तर अनुकूलतम रखा जाता है। ड्रिप सिंचाई के परिणामस्वरूप जल अनुप्रयोग की दक्षता बहुत उच्च अर्थात लगभग 90-95 प्रतिशत होती है। साथ ही साथ डॉ. शेखर ने ड्रिप एवं स्प्रिंकलर के उपयोग, रखरखाव, अवयव, इत्यादि सिंचाई प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी दी। केंद्र के उद्यान वैज्ञानिक डॉ.शशांक सिंह ने उद्यान से सम्बंधित जैसे नर्सरी बेड, बीज शोधन, पौध, ग्राफ्टिंग एंड बडिंग तैयार करना की विधि के बारे में विस्तार से जानकारी दी। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. ए. के. सिंह ने बागवानी फसलों में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर के महत्वा के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया की किसान भाई ड्रिप एवं स्प्रिंकलर का प्रयोग करके भूजल को अधिक से अधिक बचा करके गुडवक्ता युक्त उत्पादन प्राप्त कर सकते है। केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ.अविनाश राय ने बताया कि मृदा, जलवायु और फसल की दशा के अनुसार ड्रिप एवं स्प्रिंकलर का चयन करना चाहिए जिससे लम्बे समय तक टिकाऊ खेती हो सके। प्रशिक्षण में कुल 25 प्रशिक्षुओं ने प्रतिभाग किया।